Tuesday, September 28, 2010

कर लो हिन्दी से प्यार

हिन्दुस्तानी हैं हम हिन्दू, हिन्दी हमारी भाषा है।
इसमें वीणा के सुर हैं तो, ये सरिता की धारा है॥
इसमें सागर गहरा पिताः सा, तो ममता भी माँ सी है।
जिस भी रहे हम हाल में बंधु, इससे हमारा नाता है॥


हिन्दी पर है गर्व हमारा, इससे पुराना नाता है।
ये भावों की निर्झरणी है, ये देवो की वाणी है॥
इसमें पुत्र पिता कहते है और, पत्नी कहती प्राणाधार।
मैं भारत का पुत्र कहाता, ये भाषा इस मां की है॥


ये भाषा तुझको देती है, पूर्वजों का भी ज्ञान-प्रसाद।
और भविष्य भी है, जो तुम्हारा कर देती है शुभ संवाद॥
देखो प्यारे इसको बनाओ अपने गले का नवलख हार।
एक बात पते की बताऊँ, कर लो हिन्दी से भी प्यार॥

Monday, September 6, 2010

Woh College ke din....

Kuch baate bhuli hui,
kuch pal beete hue,

Har galti ka ek naya bahana,
aur fir sabki nazar me aana,

Exam ki puri raat jagna,
fir bhi sawal dekhke sar khujana,

Mauka mile to class bunk marna,
fir doston k sath canteen jana

USKI ek jhalak dekhane roj college jana,
usko dekhte dekhte attendance bhul jana,

Har pal hai naya sapna,
aaj jo tute fir bhi hai apna,

Ye college ke din,
In lamho me jindagi jee bhar ke jeena,

Yaad karke in palon ko,
Fir jindagi bhar muskurana

"mohabbat"- a mistry........

"Aasu aa jate hai aankhon me rone se pahle,
Har kwab tut jata hai sone se pahle,
Kya hai "mohabbat" ye toh samaz gaye,
Kaash koi rok leta dosti hone se pahle" ,
"Kitni buri lagti hai yeh zindagi,
jab hum tanha mehsoos karte hain,
marne ke baad milte hai chaar kandhe ,
jeete ji hum ek ko taraste hain.." ...."
bheeg jaati hai palken tanhai main,
dard hai koi jaan na le
pasand karte hain tez barish main nikalna,
kahin rote hue koi pehchaan na le"..... "
"PHool ki khushboo sa Bikhar gaya hoon,
apne wajood ke liye taras gaya hoon,
hairaan hoon jindagi tere dastoor par,
insaan hoon magar masheen sa ban gaya hoon,
waqt ke saath bahut door nikal gaya hoon,
apne khilone kahin bhool gaya hoon,
gume samandar ka nahin kinara..
apne isi malaal main doob gaya hoon,
main SIRF CHAHAT MAIN kisi ki ,
apne kai gum bhool gaya hoon,
aaftaab ki tapan ko jaanoge kaise ,
apne aap sulagta chala gaya hoon"
hmm... main bahut hi emotional aur sensitive...hoon....
kafi koshish ki apne ko badalne ki ...
lekin afsos nahi ho paya....shayari karna pasand haii...
aur bahut hi ajeeb hoon.....khair....
jaisa bhi hoon.. dil ki bura nahi hooon...

चलो आशा दीप जलाएं

मन की अभिलाषा क्रंदन करती
निज मन को ही दुःख से भारती
उजली होती काश ये धरती
कोई तो मन को समझाए

चलो आशा दीप जलाएं !!


तम हटता होता है सबेरा
हर्षित होता है मन मेरा
एक दिया लाखो अँधेरा
पल में अंधियारे को भगाए

चलो आशा दीप जलाएं !!!


मंद करुण तल यूँ जल जल के
नीर नेत्र से क्षण क्षण छलके
मन का प्रेम मन में छुपाये

चलो आशा दीप जलाएं !!!


कुछ मन में उनके कुछ था मेरे
अनजाने से क्यों बादल घेरे
क्यों हम न उनके वो न मेरे
खुद से पूछे खुद को ही बताएं

चलो आशा दीप जलायें !!!

meri ammi k swal

Raat phir khawaab main aa kar mujhse
Meri ammi ne kuchh sawaal kiye
Usse pahley mujhey duaa ye di
Khuda karey ki tu sau saal jiye
Unki aankhon main mahobbat bhi thi,

Afsos bhi tha
Ek aaNsu bhi tha un aankhon main
Jo chillata bhi tha, khamosh bhi tha
Mujhse poocha ki betey kaisey ho
Koi diqqat to nahin hai tumko

Phir kaha

Tumko maloom hai kya
Main badi takleef main hoon
Jab se laiti hoon so nahin payee
Tumhaari wajah se main khul ke ro nahin payee
Terey gunaah mujhko saanp banke danstey hain
Farishtey aakar har roz fiqrey kastey hain


Tumhi bataao beta mainey kya kami ki thi
Merey samjhaney main kami thi kya
Ya meri tarbiyat adhoori thi
Kyon burey kaam roz kartey ho
Kyon nahin us khuda se dartey ho
Jisney tumko ye jaan bakshi hai
Jisney tumko amaan bakshi hai

Naveli dulhan

Naveli dulhan ki
Ho rahi thi vidai
Bar bar rone ke liye
Ker rahi thi try
Banavati hichki li
Pehli,
Tabhi dulhan ki maa boli
Pagli,
Yahi rone lage gi to
Sara make up dhuul jayega
Teri sunderta ka
Raaz khul jayega
Sunker ladki ne kaha
Tab main kya karu maa
Maa boli , Ari
Teri akkl abhi tak khoti hai
Royega tera dulha
tu kyo roti hai.

धूम्रपान__एक कार्य महान

सिगरेट
है संजीवनी
पीकर
स्वास्थ्य बनाओ

समय
से पहले बूढ़े होकर
रियायतों
का लाभ उठाओ

सिगरेट
पीकर ही
हैरी और माइकल निकलते हैं

दूध
और फल खाकर तो
हरगोपाल
बनते हैं

जो
नहीं पीते उन्हें
इस
सुख से अवगत कराओ

बस में रेल में घर में जेल में
सिगरेट
सुलगाओ

अगर
पैसे कम हैं
फिर
भी काम चला लो

जरूरी
नहीं है सिगरेट
कभी कभी बीड़ी सुलगा लो

बीड़ी
सफलता की सीढ़ी
इस
पर चढ़ते चले जाओ

मेहनत
की कमाई
सही
काम में लगाओ

जो
हड्डियां गलाते हैं
वो
तपस्वी कहलाते हैं


कलयुग के दधीचि
हड्डियों
के साथ करो
फेफड़े
और गुर्दे भी कुर्बान

क्योंकि
धूम्रपान
एक कार्य महान

IMPORTANT NOTICE

तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)


I request to all my dear friends please do something for our MOTHERLAND "INDIA" and Contact to
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

एक औरत

मै घर की रंगीन चारदीवारी मॆं
क़ैद सी एक औरत, या सजा हुआ कोई फानूस
मै अपने घर की रौनक हू
या शायद घर वालो का गुरूर

मै घर को बनने वाली एक कड़ी या
दिवारू पर लगी हुई एक पैंटिंग
अनेको चटकीले रंगो से सजी
ओर हरियाली से खूबसूरत रंगो मै सनी ,

मै क्या हू? मुझसे ना पूछ ए मेरे खुदा,
आज तक खुद को समझ ना पायी,
मै नही हू तो कुछ नही ह,
मै हू तो घर मै रोनक ह!

पर मेरे चेहरे पर क्यों रौनक नही ह
मै क्यों एक मूरत सी कोने मै पडी हुई
मै क्यों एक बुत सी कमरे मै सजी हुई
मै क्यों चुप सी खामोश पड़ी हुई!

जब तुम जान जाओ मै क्या हू,
मुझे भी बता देना, जब मेरे हँसने पर,
तुम कोई पाबन्दी ना लगाओ तो हँसा देना,
ओर जब लगे इस मूरत की जरूरत नही तो बाहर फीकवा देना

Tuesday, August 31, 2010

मैं कभी बतलाता नहीं

मैं कभी बतलाता नहीं... पर semester से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ... grades की परवाह करता हूँ मैं माँ ..|
तुझे सब है पता ....है न माँ ||

किताबों में ...यूं न छोडो मुझे..
chapters के नाम भी न बतला पाऊँ माँ |
वह भी तो ...इतने सारे हैं....
याद भी अब तो आ न पाएं माँ ...|


क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..||

जब भी कभी ..invigilator मुझे ..
जो गौर से ..आँखों से घूरता है माँ ...
मेरी नज़र ..ढूंढे qstn paper...सोचूं यही ..
कोई सवाल तो बन जायेगा.....||

उनसे में ...यह कहता नहीं ..बगल वाले से टापता हूँ मैं माँ |
चेहरे पे ...आने देता नहीं...दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ ||


तुझे सब है पता .. है न माँ ..|
तुझे सब है पता ..है न माँ ..||

मैं कभी बतलाता नहीं... par semester से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ... grades की परवाह करता हूँ मैं माँ ..|

खुदा से क्या मांगू

खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते
सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते
हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह
खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह
सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे
पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे
आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों
महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो
तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये
सारा जग थम जाये तू जब भी गए
कभी कोई परेशानी तुझे न सताए
रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए
दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये
खुशियाँ तेरे दर से न जाये
इक छोटी सी अर्जी है मान लेना
हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना
खुशियों में चाहे हम याद आए न आए
पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना
इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे
दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे

ज़माने के रंग

हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है
कभी धूप, कभी छाव, कभी बारिशों के संग देखे है

जैसे जैसे मौसम बदला लोगों के बदलते रंग देखे है

ये उन दिनों की बात है जब हम मायूस हो जाया करते थे
और अपनी मायूसियत का गीत लोगों को सुनाया करते थे

और कभी कभार तो ज़ज्बात मैं आकर आँसू भी बहाया करते थे
और लोग अक्सर हमारे आसुओं को देखकर हमारी हँसी उड़ाया करते थे

"अचानक ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया
और हमने अपनी परेशानियों को बताना ही छोड़ दिया"

अब तो दूसरों की जिंदगी मैं भी उम्मीद का बीज बो देते है
और खुद को कभी अगर रोना भी पड़े तो हस्ते हस्ते रो देते है

मुस्कुराते रहो..

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो
रात काली सही कोई गम न करो
एक सितारा बनो जगमगाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
फासले कम करो दिल मिलाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो..

muhabat ho jaye

Hum chahte hi nahi ki muhabat ho jaye,
karogi muhabat to chere pe udasi chayegi,
jo chayegi udasi tujhe,
nind na aayegi to chere pe asar aayega,
chere pe asar aayega to tum najare churaogi ,
phir na jane kab tak mujhse milne na aaogi,
tum milne na aao mujhase aaisi nobat hi kyon aaye,
hum chate hi nahi muhabat ho jaye
Karogi muhabat to kuch yun muhabat hogi,
kabhi sak hoga mujh pe kabhi sikayat hogi
jinse vasta nahi adavat hogi,
sahar se nafrat duniya se bagawat hogi,
mera naam lekar log tujhe bulayge,
en harkato se ek din ukta jaogi,
mujhe pathar ki tarha thukra jaogi,
tum thukrao mujhe aaisi nobat hi kyon aay hum ,
Krogi muhabat to roz mulakat hogi,
waqt jaya hoga fizul baat hogi,
saam ko taane denge kuch log,
ghar phuncte-2 raat hogi,
puchenge gharwale to kya btaogi,
jhooth bologi ya khamosh ho jaogi,
soch kar din ki baato ko muskuraogi raat bhar,
nind na aayegi tumhe jagogi raat bhar,
chid chidi ho jaogi jab dost chidayge,
hum chate hi nahi muhabat ho jaye
hum sah jayege tum na sah paogi,
kaise zamane ke sitam uthaogi,
samajayege gharwale to mujh se khafa ho jaogi,
main tanha rah jauga tum bewafa ho jaogi,
tum ho jao bewafa aaisi nobat hi kyon aaye,
hum chate hi nahi muhabat ho ja

hamsafar mera

Bikhar rahi hai meri Zindgi us se kehna
Kabhi miley to yahi baat us se kehna

Who sath tha to zamana tha hamsafar mera
Magar AB koi nahin merey sath us se kehna

Usey kehna k bin us k din nahin kat'ta
Sisik sisik k kati hai raat usey kehna

Usey pukaaron k khud hi pohanch jaoon us k pas
Nahin rahey who hallat usey kehna

Agar who phir b na lotey to aey meherban dost
Hamari zindgi k halaat usey kehna

Her jeet us k naam ker raha hoon main
Main manta hoon apni haar usey kehna

Jaane Kya Baat Hai..

Jaane Kya Baat Hai, Jaane Kya Baat Hai
Neend Nahin Aati Badi Lambi Raat Hai

Saari Saari Raat Mujhe Isne Jagaya
Jaise Koi Sapna Jaise Koi Saaya
Koi Nahin Lagta Hai Koi Mere Saath Hai
Neend Nahin Aati Badi Lambi Raat Hai...

Dhakdhak Kabhi Se Jiya Dol Raha Hai
Ghungat Abhise Mera Khol Raha Hai
Door Abhi To Piya Ki Mulaqat Hai
Neend Nahin Aati Badi Lambi Raat Hai...
Jaane Kya Baat Hai..

muhammad muhmmad

dil mein ishq-e-nabi ki ho aisi lagan
ruuh tadapti rahi dil machalta rahe
zindgi ka maza hai ke har saans se
ya muhammad muhmmad nikalta rahe
noor ke motiyon ki ladi ban gayi
ayaton se milata raha ayatayein
phir jo dekha toh naat-e-nabi ban gayi
jo bhi aansoo bahe mere mehboob ke
sab ke sab abr-e-rehmat ke chheente[छींटे] bane
chha gayi raat, jab zulf lehra gayi
jab tabasum kiya, chandni ban gayi
yeh toh maan ke jannat hai bagh-e-haseen
khubsurat hai sab khuld ki sar zameen
husn-e-zannat ko phir jab sameta gaya
sarwar-e-ambiya ki gali ban gayi
jab chirah tazkira unnke rukhsaar ka
waduha pad liya wal qamar keh diya
suatoon ki tilawat bhi hoti rahi
naat bhi ho gayi baat bhi ban gayi
sab se bekas tha bebas tha mazbuur tha
unnko reham aa gaya mere halaat par
meri azmat meri bebasi ban gayi
ya muhammad muhammad main kehta raha

""Ashiq""

प्रेमियों की शक्ल बिल्कुल भूत जैसी होनी चाहिए।
अक्ल असली नाप में छह सूत होनी चाहिए।
इश्क करने के लिए कलेजा ही काफी नहीं,
प्रेमियों की चांद भी मजबूत होनी चाहिए।

Girlfriend

आती हो गली मे हीर की तरह
लगती हो मीठी खीर की तरह
आंखों मे चुभी हो तीर की तरह
पर अब समझ चुका हूं कि तुम मुझे,
भीख मंगवाओगी फकीर की तरह।

अपुन की दोस्ती,

अपुन की दोस्ती,
अपुन आग तो तू घी,
अपुन मिल्क तो तू टी,
अपुन आसमान तो तू तारा,
अपुन जानवर तो चारा,
अपुन एक्जाम तो तू चिट,
अपुन मुन्ना तो तु सर्किट।

Zindagi se hara hua

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...
Zindagi se hara hua hai ....

Par "customers" se haar nahi maanta,
Apne presentation ki ek line isey rati
hui hai....

par aaj kaun se rang ke moje pehne hain,
ye nahi jaanta,

Din par din ek excel file banata ja raha hai..

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...

Das hazaar customers mein se ache
Customer dhoond lete hain lekin ,

Majboor dost ki ankhhon ki nami
dikhayi nahi deti,

PC pe hazzar windows khuli hain,
Par dil ki khidki pe koi dastak sunayi nahi deti...

Saturday-Sunday nahata nahi ,
Weekdays ko naha raha hai...

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...

Reporting karte karte pata hi nahi chala,
"Boss" kab maa baap se bhi bade ho gaye,

Kitabon me gulab rakhne wala,
Cigrette me kho gaya,

Weekends pe daroo pee ke jo jashn mana raha hai ,

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...................................

Zindagi se hara hua

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...
Zindagi se hara hua hai ....

Par "customers" se haar nahi maanta,
Apne presentation ki ek line isey rati
hui hai....

par aaj kaun se rang ke moje pehne hain,
ye nahi jaanta,

Din par din ek excel file banata ja raha hai..

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...

Das hazaar customers mein se ache
Customer dhoond lete hain lekin ,

Majboor dost ki ankhhon ki nami
dikhayi nahi deti,

PC pe hazzar windows khuli hain,
Par dil ki khidki pe koi dastak sunayi nahi deti...

Saturday-Sunday nahata nahi ,
Weekdays ko naha raha hai...

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...

Reporting karte karte pata hi nahi chala,
"Boss" kab maa baap se bhi bade ho gaye,

Kitabon me gulab rakhne wala,
Cigrette me kho gaya,

Weekends pe daroo pee ke jo jashn mana raha hai ,

Wo dekho ek sales ka Banda ja raha hai ...................................

Thursday, August 26, 2010

some hindi sort poems

Dosti (( Her ) Friendship )


Teri dosti ne gum diye itne,
teri ruswayi ne na diye hon kabhi jitne,
Is dar par se jo kafila hamara nikle to,
Bus utne hi rona, dil bekaboo hon jinke.


AaNkH kHuLi To PhiR ...


Aankh khuli to phir khwaab chale gaye
jii behlane ke saare bahaane chale gaye

yaad rehta nahi kuch bhi yaad kiye bina
yaadoN me khokar jeene ke sahare chale gaye

gham bhi gaya, khushiyaN bhi gaye
ek ek karke sab yaar chale gaye

har tasawwur me dekha tere chehre ko
har shaks ko khuda banakar chale gaye

chupaya na jaye logoN se meri dil ki raghbat
teri furqat ke sholay ragoN me chupakar chale gaye

sirf dil hi tha tera sabse bada khazaana 'jags'
phir kyun usey ek ajnabee pe lutakar chale gaye.

Pawitr Rishta (Pure Relationship)


Jab hum is duniya mein aate hai,
Toh kitne rishtey saath laatey hai.
Duniya mein aane ne baad hum,
Kitne naye rishtey baanthe hai.
Magar in rishto mein se sirf,
woh pyaar ka pawitr rishta hai,
Jo hum marte dum tak nibhaate hain.

Dupatta



Dupatta laal chunari kaa,
Lipat kar tujh se rehataa hai,
Meri pyaasi nigaaho.n par,
hameshaa hansataa rehataa hai.

Kabhi udataa hawaao.n main,
Simatataa teri baahon main
Kabhi kaandhe pe bekaaboo,
Sirakataa firataa rehataa hai.

Tere kaanon main kehataa kuchh,
Ya seene se lagaa rehataa,
Teri dhakan ko gin gin kar,
Yeh uthataa girataa rehataa hai.

Kabhi teri kamar isski,
Girafton main bandhi rehati,
Kabhi yeh peeth par kaafir,
Khisakataa khinchataa rehataa hai.

Kabhi paunchhe paseene ko,
Kabhi dhakataa hai soorat ko,
Kabho gaalon ko choota hai,
Kabhi munh lag ke rehataa hai

Kabhi kaaleen ban jaataa,
Kabhi godi mai.n sota hai,
Tere haathon ko sehlaataa,
Satataa mujhko rehataa hai

Isse sar na chadhao tum,
Dupatta hai meraa dushman,
Hamaare darmiyaan har dam,
Kyon yeh besharm rehataa hai.

Badshah!



dhan se na paya koi roop se na paya
anmol ratan hei woh koi mol na lagaya

yun lutata gaya koi dil mei chhupata gaya
amir mehel ka kabhi fakir se haath milaya

dil mei dard kabhi ankhon mei nasha
hoton mei pyaar lekin baton se kare ghussa

ye hei dil ka ranjha koi sharabi ka nasha
mohabbat hei naam iska.................
yaaron ko jo banaye BADSHAH!!!!

Kaho na ..

Kuchh pal saath chale to jaanaa,
Rastaa hai jaanaa pehchanaa .

Saanso ko sur de jaataa hai,
Tera yo.n sapano mai.n aanaa.

Maine jatan kiye to lakho.n
Mann ne meet tumhi ko maanaa

Ab to haath thhaam lene do
Aur kaho na , na na , na na !

.... Raj 17.7.99


Kuchh kaho na !



Sau janam ka saath apna,
Sans ka dhadkan se jaise,
Aas ka jeevan se jaise,
Kaise kate saal solah,
Shyam ki jogan ke jaise.
Jhoot ke parde na dhoondo,
Sach kaho na .
Kuchh kaho na ..
Ek dooje ke liye ham,
Haath main kangan ke jaise,
Pyaas main sawan ke jaise,
Roop ko darpan ke jaise,
Bhakt ko bhag_van ke jaise.
Jheel si simtee na baitho,
Kuchh baho na .
Kuchh kaho na ..

Jaanata hoon thak gayee ho,
Umr ke lambe safar se,
Saanp se dasate shahar se,
Aas se aur aansuon se,
Bheed ke gahare bhawanar se.
Waqt firata hai suno,
Itna daro na .
Kuchh kaho na ..

Kis tarah ladatee rahi ho,
Pyaas se parchhaiyon se,
Neend se , angadaiyon se,
Maut se aur zindagi se,
Teej se ,tanahaiyon se.
Sab tapasya tod dalo,
Ab saho na
Kuchh kaho na !!





Kuchh kaho na !

Syaah sannaton main hamane,
Umr katee hai tanhaa,
Tang aur andhi surangen,
Is gufaa se us gufaa.

Saans thi sahami hui si,
Dhadakanon ko ek darr,
Itnaa tanhaa aur lambaa,
Zindgi ka uff safar.
Door meelon door jalati ,
Lau koi lagatee ho tum ,
Tum ho,tum ho,Tum hi tum ho ,
Ho naa tum, tum, ho naa tum.

Pal se pal tak jee rahe hain,
Tum hi pal pal aas ho na,
Ek pal to aur thaharo ,
Ek pal dikhati raho na .

Kuchh kaho na !!

हिचकियों से एक बात………..

हिचकियों से एक बात का पता चलता है, कि कोई हमे याद तो करता है, बात न करे तो क्या हुआ,
कोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता है
ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती, हर बात समझाने के लिए नही होती, याद तो अक्सर आती है आप की,
लकिन हर याद जताने के लिए नही होती महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है, मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता, वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है
कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है
प्यास भुजती नही बरसात गुज़र जाती है
अपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करे
नींद आती नही और रात गुज़र जाती है
उमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैं,
वक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैं,
सोचते हैं तुम्हें इतना याद न करें,



लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं कभी कभी दिल उदास होता है
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है

Wednesday, August 25, 2010

Aata tera khayaal hai ab bhi kabhi kabhi

Aata tera khayaal hai ab bhi kabhi kabhi
dil ko tera malaal hai ab bhi kabhi kabhi
maange se gar mile toh khuda se mai maang lu
dua me meri sawaal hai ab bhi kabhi kabhi

nasoor ban gaya hai jakham ishq ka mere
jakhm-e-jigar me dard bhi hota hai kabhi kabhi

bizli gire khuda ki ek arsaa guzar gaya
chingaari magar ab bhi chamakti hai kabhi kabhi

har sakhs pairhan se rahe mumkin nahi sadaa
laash-e-bekafan bhi guzarti hai kabhi kabhi

sabr-o-wafa se paate nahi hardam visaal-e-yaar
sabr-o-wafa me chot bhi milti hai kabhi kabhi

Bechen hain dil apke bagair

Bechen hain dil apke bagair ab,
Lakhon chahere me tuzko hi dhundhe meri nigahen
Mile jo tu dekha karu tuzko rat- din
Kal ki mulakat to abhi baki hain
Saton samndar le lo tum badle me lekin
Hata do aapke dil par jo paththar mere liye hain
Chahe bar bar marna pade muze tere liye
Bas ek hi bar pana chahti hu main tumhe
Apke sath se phir muze muskurana aaye
Kya aap sochoge ki main muskurati rahu
Zarurat hain apke pyar ki khusboo ki
Phir se mahek jaye meri jindgi ka bagicha,
Phool bankar na sahi, kanten banke to aao,
Achchha lagega muze kanton se milne vala dard bhi
Jab honge tum pas me mere,

YAAD TERI IS DIL SE JUDA NAHI HAI

YAAD TERI IS DIL SE JUDA NAHI HAI

NAZROO SE DOOR HAI MAGAR DIL SE QREEB HAI

IS ISHQ KE AADAB HAI AJEEB KITNE

WO HI HUM SE DUR HAI JO SAB SE QAREEB HAI

PA JANA HI ISHQ KI MIRAAJ TU NAHI

BICHADNA BHI IS ISHQ KA AKSAR NASEEB HAI

RAKHTA HAI CHEHRE KO TUMHARE HAR DUM CHUPA HUA

AANCHAL YE TUMHAR HUMARA RAQEEB HAI

MALUM NA HU BAAT JO KAHTA HAI USI KO

IS DAOR KA BACHA BACHA BHI KHATEEB HAI

KARTA HAI YAAD KOI BHI TUM KO NAHI NAFEES

AIYSA KAHA HAI KOI JO TUM SE QREEB HAI

koi deewana kahta

Mauhabbat ek ehsasson ki pawan si kahaani hai
Koi deewana kehta hai,koi paagal samajhta hai
magar dharti ki bechaini ko bus pagal samajhta hai
mein tujhse door kaisa hoon, tu mujhse door kaisi hai
ye tera dil samajhta hai, yaa mera dil samajhta hai

kabhi kabira deewana tha, kabhi meera diwani thi
yahaan sab log kehte hain meri aankhon mein aasoon hain
jo tu samjhe to moti hai, naa samjhe to paani hai

samandar peer ka andar hai lekin ro nahin sakta
ye aasoon pyaar ka moti hai isko kho nahin sakta
meri chahaht ko apna tu bana lena magar sun le
jo mera ho nahin paaya wo tera ho nahin sakta

Ki brahmar koi kumudni par machal baitha to hangama
hamaare dil mein koi khwab pal baitha to hungama
abhi tak doob kar sunte the sab kissa mauhabbat ka
mein kisse ko hakikat mein badal baitha to hungaama

Tuesday, July 13, 2010

आसान नहीं है

आसान नहीं है
मुझसे पार पाना
मैं जेठ की गरम लूक हूँ
और दिसम्बर की पाला-मार हवा।
मैं अंधेरे में झुका हुआ
केले का नरम पत्ता हूँ
जिसे चीर जाती है
उतावली हवा
मुहब्बत में।
मैं तमाम जंगलों से दूर
तन कर खड़ा बर का पेड़ हूँ
अपने गाँठों-भरे तने को फैलाता हुआ।
मैं गेहुएँ रंग का पत्थर हूँ
पर उस पर खुदा हुआ
झूठा बखान नहीं हूँ
आसान नहीं है
मुझसे पार पाना।

घुमन्ता-फिरन्ता

बाबा नागार्जुन !
तुम पटने, बनारस, दिल्ली में
खोजते हो क्या
दाढ़ी-सिर खुजाते
तब तक होगा हमारा गुजर-बसर
टुटही मँड़ई में ऐसे
लाई-लून चबा के।
तुम्हारी यह चीलम-सी नाक
चौड़ा चेहरा-माथा
सिझी हुयी चमड़ी के नीचे
घुड़े खूब तरौनी-गाथा।
तुम हो हमारे हितू, बुजरुक
सच्चे मेंठ
घुमन्ता-फिरन्ता उजबक्-चतुर
मानुष ठेंठ।
मिलना इसी जेठ-बैसाख
या अगले अगहन,
देना हमें हड्डियों में
चिर-संचित धातु गहन।

निराला से

तुम्हारी आँखों में
मधुर आँच में क्या सिझ रहा है
जैसे कविता.....
जैसे बहुत कुछ।
क्या हुआ जो तुम मिले नहीं मुझसे
तुम्हारा अंधकार में दमकता
ललाट मैंने नहीं देखा
पछता नहीं रहा
तुम हुन्नरी थे
मेरे आदि आचार्य !
मैं भरम रहा हूँ
इधर-उधर, नार-खोह में
पौरुषहीन नहीं मैं,
तुम्हारा दिया बहुत कुछ है मेरे-पास
मैं भरमूँगा और पाऊँगा
जो चाहिए मुझे।
मेरे-तुम्हारे बीच
बहुत सारे चेहरे हैं झुलसे हुए
बहुत सारे दुखों के दुख हैं
ओ मेरे पुरनियाँ !
तुम्हारी आँखों में
क्या सिझ रहा है
मेरे लिए-उनके लिए
कविता.........
और बहुत कुछ।

सिर्फ़ कवि नहीं

नहीं मान सकता मैं
कि ठंड से इनका कुछ न बिगड़ेगा
कि आग इन्हें तपा कर
झुलसा तक नहीं पाएगी,
कि हवा
केवल इनकी शाखों में
झूल कर रह जाएगी,
बरसात में
भींग गई है इनकी देह
इनका खड़ा रह पाना
कुछ मुश्किल लग रहा है,
बढ़इयों को चाहिए
कि इनके लिए गढ़ें
कमींज़,
तैयार करें इनके लिए
जूते,
वैसे भी ये
टोपी की माँग
अक्सर नहीं करते
मैं सिर्फ़ कवि नहीं हूँ
समझ रहा हूँ
मौसम कुछ ठीक-ठाक नहीं है।

सूर समर करनी करहिं


सर्वथा ही
यह उचित है
औ’ हमारी काल-सिद्ध, प्रसिद्ध
चिर-वीरप्रसविनी,
स्वाभिमानी भूमि से
सर्वदा प्रत्याशित यही है,
जब हमें कोई चुनौती दे,
हमें कोई प्रचारे,
तब कड़क
हिमश्रृंग से आसिंधु
यह उठ पड़े,
हुन्कारे–
कि धरती कँपे,
अम्बर में दिखाई दें दरारें।

शब्द ही के
बीच में दिन-रात बसता हुआ
उनकी शक्ति से, सामर्थ्य से–
अक्षर–
अपरिचित मैं नहीं हूँ।
किन्तु, सुन लो,
शब्द की भी,
जिस तरह संसार में हर एक की,
कमज़ोरियाँ, मजबूरियाँ हैं–
शब्द सबलों की
सफल तलवार हैं तो
शब्द निर्बलों की
पुंसक ढाल भी हैं।
साथ ही यह भी समझ लो,
जीभ को जब-जब
भुजा का एवज़ी माना गया है,
कण्ठ से गाया गया है

और ऐसा अजदहा जब सामने हो
कान ही जिसके न हों तो
गीत गाना–
हो भले ही वीर रस का वह तराना–
गरजना, नारा लगाना,
शक्ति अपनी क्षीण करना,
दम घटाना।
बड़ी मोटी खाल से
उसकी सकल काया ढकी है।
सिर्फ भाषा एक
जो वह समझता है
सबल हाथों की
करारी चोट की है।

ओ हमारे
वज्र-दुर्दम देश के,
विक्षुब्ध-क्रोधातुर
जवानो !
किटकिटाकर
आज अपने वज्र के-से
दाँत भींचो,
खड़े हो,
आगे बढ़ो;
ऊपर चढ़ो,
बे-कण्ठ खोले।
बोलना हो तो
तुम्हारे हाथ की दी चोट बोले !

बहुरि बंदि खलगन सति भाएँ...
खलों की (अ) स्तुति
हमारे पूर्वजन करते रहे हैं,
और मुझको आज लगता,
ठीक ही करते रहे हैं;
क्योंकि खल,
अपनी तरफ से करे खलता,
रहे टेढ़ी,
छल भरी,
विश्वासघाती चाल चलता,
सभ्यता के मूल्य,
मर्यादा,
नियम को
क्रूर पाँवों से कुचलता;
वह विपक्षी को सदा आगाह करता,
चेतना उसकी जगाता,
नींद, तंद्रा, भ्रम भगाता
शत्रु अपना खड़ा करता,
और वह तगड़ा-कड़ा यदि पड़ा
तो तैयार अपनी मौत की भी राह करता।

आज मेरे देश की
गिरि-श्रृंग उन्नत,
हिम-समुज्ज्वल,
तपःपावन भूमि पर
जो अज़दहा
आकर खड़ा है,
वंदना उसकी
बड़े सद्भाव से मैं कर रहा हूँ;
क्योंकि अपने आप में जो हो,
हमारे लिए तो वह
ऐतिहासिक,
मार्मिक संकेत है,
चेतावनी है।
और उसने
कम नहीं चेतना
मेरे देश की छेड़ी, जगाई।
पंचशीली पँचतही ओढ़े रज़ाई,
आत्मतोषी डास तोषक,
सब्ज़बागी, स्वप्नदर्शी
योजना का गुलगुला तकिया लगाकर,
चिर-पुरातन मान्यताओं को
कलेजे से सटाए,
देश मेरा सो रहा था,
बेखबर उससे कि जो
उसके सिरहाने हो रहा था।
तोप के स्वर में गरजकर,
प्रध्वनित कर घाटियों का
स्तब्ध अंतर,
नींद आसुर अजदहे ने तोड़ दी,
तंद्रा भगा दी।
देश भगा दी।
देश मेरा उठ पड़ा है,
स्वप्न झूठा पलक-पुतली से झड़ा है,
आँख फाड़े घूरता है
घृण्य, नग्न यथार्थ को
जो सामने आकर खड़ा है।
प्रांत, भाषा धर्म अर्थ-स्वार्थ का
जो वात रोग लगा हुआ था–
अंग जिससे अंग से बिलगा हुआ था...
एक उसका है लगा धक्का
कि वह गायब हुआ-सा लग रहा है,
हो रहा है प्रकट
मेरे देश का अब रूप सच्चा !
अज़दहे, हम किस क़दर तुझको सराहें,
दाहिना ही सिद्ध तू हमको हुआ है
गो कि चलता रहा बाएँ।

Saturday, July 3, 2010

सूरज को हंसने दो-Narender Dagar

सूरज जब हंसता है
लगता है
फिर कोई बादल बरसने को है
रहमत का फरिश्ता आने को है
जो निजात दिलाएगा
चांद के टेढ़ेपन से
निजवाद और
आतंकवाद से
फिर जरूर कोई चिड़िया
चहकेगी
मेरे आंगन में
जो सूरज के कुपित होने पर
सूना हो गया था
प्यासा स्वार्थ
जगत पर कुएं की
प्यासा बैठा है
उसे डोलची की जरूरत है
जो नायक के पास रह गई
वह अश्वमेघ के लिए उसकी प्रतीक्षा किए बिना
अपने क्षेत्र में चला गया
जहां इन दिनों चुनावी समर जोरों पर है
जिसे उन दोनों ने अश्वमेघ नाम दिया
सूखे प्यासे होंठों पर जीभ फिराता
प्यासा कुएं में झांक रहा है
उसे भीतर दिखाई दे रहा है
स्वार्थी
अपना ही अक्स
जो नेता को वोट देने के बाद पछता रहा है
कुआं उसे सूखा लग रहा है
लोमड़ी की तरह
निराश है वह
चालाक प्यासा वोटर
तपने के बाद
पास बैठकर बता
देखता है इतनी दूर
सूरज बादलों में
हंसकर कह रहा है
तपता रह
मेरी तरह
एक दिन
फिर
छंट जाएंगे
दुखों के बादल
आधा चांद
आधा चांद चांदनी बिखेरता
वह बच्चा उसे देखता
बच्चा युवा हो गया
चांद अब भी आधा रहा
उसकी चांदनी वैसी शीतल
उतनी ही चंचल
मगर बच्चे की चंचलता
उसकी आभा
उसका उल्लास
न जाने कहां खो गया
वह उसे ढूंढ़ने में दिन गुजार देता
फिर किराये के मकान की छत पर
देखता चांद को
वह मुस्करा रहा होता
वैसे ही, जैसे उसके बचपन में मुस्कुराता था
वह अपनी डिग्रियां उठाए
छत के कोने में बैठ जाता
ट्रांजिस्टर पर खबरे सुनता
दूसरे दिन फिर नौकरी की तलाश में निकलता
अपने चांद-से मुन्ने को चूमता
उसे कहता
बेटा आधा चांद पूर्णिमा को पूरा दिखेगा
हमारी अमावस बस अब पूर्णिमा में बदलेगी
अबोध मुन्ना मुस्कुरा देता, बिना कुछ समझे
क्रम चलता रहा
मुन्ना अपने मुन्ने को
वही कह रहा है
जो कभी मैंने उसे कहा था

कोटर के आंसू-Narender Dagar

पेड़ पर शाखाहीन होने लगा है
पत्ते तेज हवाओं से झड़ गए हैं
नभचरों ने बुन लिया है
फिर दूर कहीं एक नींड़
किसी हरेभरे बरगद की
घनी कौपलों के बीच
चील-कौओं से बचने के लिए
ठूंठ बनते जा रहे पेड़ के पास
तने से निकलते आंसुओं के सिवाय
कुछ नहीं बचा
आंसू भी निर्दयी लक़ड़हारा
गोंद समझकर ले जा रहा है

दादा पोते के जमाने- Narender Dagar

तपती दुपहरी हो या छतों पर गुजरती रातें
दादे पोते को नींद नहीं आती
दादा बताता है अपने जमाने की बातें
पोता सुनाता है आज के हालात
कितने ही सालों का फर्क
गिनते हैं दोनों
नहीं मिलता सुखी दिनों का इतिहास
दोनों दुखियारों को
बहता रहता है लोगों की आंखों से नीर रक्तवर्णी
जैसे पहती है आंखें मां की
भाइयों का बिछड़ना देख कर
त्रस्त होती हैं कुशासन के अधीन जमीनी प्रजा रानी
तपती दुपहरी हो या छतों पर गुजरती रातें
दादे पोते को नींद नहीं आती
दादा बताता है अपने जमाने की बातें
पोता सुनाता है आज के हालात

Friday, July 2, 2010

रद्दे-अ़मल१- Narender

रद्दे-अ़मल१
चन्द कलियां निशात की२ चुनकर
मुद्दतों महवे-यास३ रहता हूं
तेरा मिलना खुशी की बात सही
तुझ से मिलकर उदास रहता हूं
–––––––––––––----------------------------
१. प्रतिक्रिया २. आनन्द की ३. ग़म में डूबा हुआ
एक मन्ज़र१
उफक़ के२ दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा३ तन गई, रास्ते मुस्कुराये

सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने४ घूंघट उठाये

परिन्दों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार५ लै में रहट गुनगुनाये

हसीं शबनम-आलूद६ पगडंडियों से
लिपटने लगे-सब्ज़ पेड़ों के साये

वो दूर एक टीले पे आंचल सा झलका
तसव्वुर में७ लाखों दिये झिलमिलाये
–––––––––––––––––------------------------
१. दृश्य २. क्षितिज के ३. वातावरण ४. शाखाओं ने ५. रहस्यपूर्ण ६. ओस-भरी ७. कल्पना में
एक वाक़या१
अंधियारी रात के आंगन में ये सुबह के क़दमों की आहट
ये भीगी-भीगी सर्द हवा, ये हल्की-हल्की धंधलाहट

गाड़ी में हूं तनहा२ महवे-सफ़र३ और नींद नहीं है आंखों में
भूले-बिसरे रूमानों के ख़्वाबों की ज़मीं है आंखों में

अगले दिन हाथ हिलाते हैं, पिछली पीतें याद आती हैं
गुमगश्ता४ ख़ुशियां आंखों में आंसू बनकर लहराती है

सीने वे वीरां गोशों में५ इक टीस-सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है

वो राहें ज़हन में६ घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूं
कितनी उम्मीद से पहुंचा था, कितनी मायूसी लाया हूं
–––––––––––––––––-----------------------------------------
१. घटना २. अकेला ३. यात्रा-मग्न ४. खोई हुई ५. वीरान कोनों में ६. मस्तिष्क में
यकसूई१
अहदे-गुमगश्ता की तसवीर दिखाती क्यों हो ?
एक आवारा-ए-मंज़िल को२ सताती क्यों हो ?
वो हसीं अहद३ जो शर्मिंदा-ए-ईफ़ा न हुआ४,
उस हंसी अहद का मफ़हूम जताती क्यों हो ?
ज़िन्दगी शो’ला-ए-बेबाक५ बना लो अपनी,
ख़ुद को ख़ाकस्तरे-ख़ामोश६ बनाती क्यों हो ?
मैं तसव्वुफ़ के७ मराहिल का८ नहीं हूं क़ायल९,
मेरी तसवीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यों हो ?
कौन कहता है कि आहें हैं मसाइब का१॰ इलाज,
जान को अपनी अ़बस११ रोग लगाती क्यों हो ?
एक सरकश से१२ मोहब्बत की तमन्ना रखकर,
ख़ुद को आईन के१३ फंदे में फंसाती क्यों हो ?
मैं समझता हूं तक़ददुस१४ को तमददुन१५ का फ़रेब,
तुम रसूमात को१६ ईमान बनाती क्यों हो ?
जब तुम्हें मुझसे ज़ियादा है ज़माने का ख़याल,
फिर मेरी याद में यूं अश्क१७ बहाती क्यों हो ?

त़ुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर दो।
वर्ना मां-बाप जहां कहते हैं शादी कर लो।।

रद्दे-अ़मल१- Narender dagar

रद्दे-अ़मल१
चन्द कलियां निशात की२ चुनकर
मुद्दतों महवे-यास३ रहता हूं
तेरा मिलना खुशी की बात सही
तुझ से मिलकर उदास रहता हूं
–––––––––––––----------------------------
१. प्रतिक्रिया २. आनन्द की ३. ग़म में डूबा हुआ
एक मन्ज़र१
उफक़ के२ दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा३ तन गई, रास्ते मुस्कुराये

सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने४ घूंघट उठाये

परिन्दों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार५ लै में रहट गुनगुनाये

हसीं शबनम-आलूद६ पगडंडियों से
लिपटने लगे-सब्ज़ पेड़ों के साये

वो दूर एक टीले पे आंचल सा झलका
तसव्वुर में७ लाखों दिये झिलमिलाये
–––––––––––––––––------------------------
१. दृश्य २. क्षितिज के ३. वातावरण ४. शाखाओं ने ५. रहस्यपूर्ण ६. ओस-भरी ७. कल्पना में
एक वाक़या१
अंधियारी रात के आंगन में ये सुबह के क़दमों की आहट
ये भीगी-भीगी सर्द हवा, ये हल्की-हल्की धंधलाहट

गाड़ी में हूं तनहा२ महवे-सफ़र३ और नींद नहीं है आंखों में
भूले-बिसरे रूमानों के ख़्वाबों की ज़मीं है आंखों में

अगले दिन हाथ हिलाते हैं, पिछली पीतें याद आती हैं
गुमगश्ता४ ख़ुशियां आंखों में आंसू बनकर लहराती है

सीने वे वीरां गोशों में५ इक टीस-सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है

वो राहें ज़हन में६ घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूं
कितनी उम्मीद से पहुंचा था, कितनी मायूसी लाया हूं
–––––––––––––––––-----------------------------------------
१. घटना २. अकेला ३. यात्रा-मग्न ४. खोई हुई ५. वीरान कोनों में ६. मस्तिष्क में
यकसूई१
अहदे-गुमगश्ता की तसवीर दिखाती क्यों हो ?
एक आवारा-ए-मंज़िल को२ सताती क्यों हो ?
वो हसीं अहद३ जो शर्मिंदा-ए-ईफ़ा न हुआ४,
उस हंसी अहद का मफ़हूम जताती क्यों हो ?
ज़िन्दगी शो’ला-ए-बेबाक५ बना लो अपनी,
ख़ुद को ख़ाकस्तरे-ख़ामोश६ बनाती क्यों हो ?
मैं तसव्वुफ़ के७ मराहिल का८ नहीं हूं क़ायल९,
मेरी तसवीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यों हो ?
कौन कहता है कि आहें हैं मसाइब का१॰ इलाज,
जान को अपनी अ़बस११ रोग लगाती क्यों हो ?
एक सरकश से१२ मोहब्बत की तमन्ना रखकर,
ख़ुद को आईन के१३ फंदे में फंसाती क्यों हो ?
मैं समझता हूं तक़ददुस१४ को तमददुन१५ का फ़रेब,
तुम रसूमात को१६ ईमान बनाती क्यों हो ?
जब तुम्हें मुझसे ज़ियादा है ज़माने का ख़याल,
फिर मेरी याद में यूं अश्क१७ बहाती क्यों हो ?

त़ुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर दो।
वर्ना मां-बाप जहां कहते हैं शादी कर लो।।

एक एहसास – Narender dagar

हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
बड़े क़रीब से उठकर चला गया कोई
मीना जी चली गईं। कहती थीं :
राह देखा करेगा सदियों तक,
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा
और जाते हुए सचमुच सारे जहान को तन्हा कर गईं; एक दौर का दौर अपने साथ लेकर चली गईं। लगता है, दुआ में थीं। दुआ खत्म हुई, आमीन कहा, उठीं, और चली गईं। जब तक ज़िन्दा थीं, सरापा दिल की तरह ज़िन्दा रहीं। दर्द चुनती रहीं, बटोरती रहीं और दिल में समोती रहीं। कहती रहीं :
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था,
उतनी ही सौग़ात मिली।।
जब चाहा दिल को समझें,
हंसने की आवाज़ सुनी।
जैसे कोई कहता हो, लो
फिर तुमको अब मात मिली।।
बातें कैसी ? घातें क्या ?
चलते रहना आठ पहर।
दिल-सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली।।
समन्दर की तरह गहरा था दिल। वह छलक गया, मर गया और बन्द हो गया, लगता यही कि दर्द लावारिस हो गए, यतीम हो गए, उन्हें अपनानेवाला कोई नहीं रहा। मैंने एक बार उनका पोर्ट्रेट नज़्म करके दिया था उन्हें। लिखा था :
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लम्हा-लम्हा खोल रही है
पत्ता-पत्ता बीन रही है
एक-एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन
एक-एक सांस को खोल के, अपने तन
पर लिपटाती जाती है
अपने ही तांगों की क़ैदी
रेशम की यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुटकर मर जाएगी।
पढ़कर हंस पड़ीं। कहने लगीं–‘जानते हो न, वे तागे क्या हैं ? उन्हें प्यार कहते हैं। मुझे तो प्यार से प्यार है। प्यार के एहसास से प्यार है, प्यार के नाम से प्यार है। इतना प्यार कोई अपने तन से लिपटाकर मर सके, तो और क्या चाहिए ?’
उन्हीं का एक पन्ना है मेरे सामने खुला हुआ। लिखा है :
प्यार सोचा था, प्यार ढूंढ़ा था
ठंडी-ठंडी-सी हसरतें ढूंढ़ी
सोंधी-सोंधी-सी, रूह की मिट्टी
तपते, नोकीले, नंगे रस्तों पर
नंगे पैरों ने दौड़कर, थमकर,
धूप में सेंकीं छांव की चोटें
छांव में देखे धूप के छाले

अपने अन्दर महक रहा था प्यार–
ख़ुद से बाहर तलाश करते थे
बाहर से अन्दर का यह सफ़र कितना लम्बा था कि उसे तय करने में उन्हें एक उम्र गुज़ारनी पड़ी। इस दौरान, रास्ते में जंगल भी आए और दश्त भी, वीराने भी और कोहसार भी। इसलिए कहती थीं :
आबलापा१ कोई दश्त२ में आया होगा
वर्ना आंधी में दीया किसने जलाया होगा ?
–––––––––––––––––-------------------------

Wednesday, March 31, 2010

दर्पण

जा रहीं देवता से मिलने ?
तो इतनी कृपा किये जाओ।
अपनी फूलों की डाली में
दर्पण यह एक लिये जाओ।

आरती, फूल से प्रसन्न
जैसे हों, पहले कर लेना;
जब हाल धरित्री का पूछें,
सम्मुख दर्पण यह धर देना।

बिम्बित है इसमें पुरुष पुरातन
के मानस का घोर भँवर;
है नाच रही पृथ्वी इसमें,
है नाच रहा इसमें अम्बर।

यह स्वयं दिखायेगा उनको
छाया मिट्टी की चाहों की,
अम्बर की घोर विकलता की,
धरती के आकुल दाहों की।

ढहती मीनारों की छाया,
गिरती दीवारों की छाया,
बेमौत हवा के झोंके में
मरती झंकारों की छाया।

चाँद और कवि

रात यों कहने लगा मुझ से गगन का चाँद,
‘‘आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुला जल का,
आज बनता और कल फिर फूट जाता है;
किन्तु, तो भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो !
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।’’

मैं न बोला, किन्तु मेरी रागिनी बोली,
‘‘चाँद ! फिर से देख मुझको जानता है तू ?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं ? है यही पानी ?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू ?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ;
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह, दीवार फ़ौलादी उठाती हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है;
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जलाकर ख़बर कर दे,
‘‘रोज़ ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं ये;
रोकिये, जैसे बने, इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं ये।’’

नील कुसुम

‘‘है यहाँ तिमिर, आगे भी ऐसा ही तम है,
तुम नील कुसुम के लिए कहाँ तक जाओगे ?
जो गया, आज तक नहीं कभी वह लौट सका,
नादान मर्द ! क्यों अपनी जान गँवाओगे ?

प्रेमिका ! अरे, उन शोख़ बुतों का क्या कहना !
वे तो यों ही उन्माद जगाया करती हैं;
पुतली से लेतीं बाँध प्राण की डोर प्रथम,
पीछे चुम्बन पर क़ैद लगया करती हैं।

इनमें से किसने कहा, चाँद से कम लूँगी ?
पर, चाँद तोड़ कर कौन मही पर लाया है ?
किसके मन की कल्पना गोद में बैठ सकी ?
किसकी जहाज़ फिर देश लौट कर आया है ?’’

ओ नीतिकार ! तुम झूठ नहीं कहते होगे,
बेकार मगर, पागलों को ज्ञान सिखाना है;
मरने का होगा ख़ौफ़, मौत की छाती में
जिसको अपनी ज़िन्दगी ढूँढ़ने जाना है ?

औ’ सुना कहाँ तुमने कि ज़िन्दगी कहते हैं,
सपनों ने देखा जिसे, उसे पा जाने को ?
इच्छाओं की मूर्तियाँ घूमतीं जो मन में,
उनको उतार मिट्टी पर गले लगाने को ?

ज़िन्दगी, आह ! वह एक झलक रंगीनी की,
नंगी उँगली जिसको न कभी छू पाती है,
हम जभी हाँफते हुए चोटियों पर चढ़ते,
वह खोल पंख चोटियाँ छोड़ उड़ जाती है।

रंगीनी की वह एक झलक, जिसके पीछे
है मच हुई आपा-आपी मस्तानों में,
वह एक दीप जिसके पीछे है डूब रहीं
दीवानों की किश्तियाँ कठिन तूफ़ानों में।

डूबती हुई किश्तियाँ ! और यह किलकारी !
ओ नीतिकार ! क्या मौत इसी को कहते हैं ?
है यही ख़ौफ़, जिससे डरकर जीनेवाले
पानी से अपना पाँव समेटे रहते हैं ?

ज़िन्दगी गोद में उठा-उठा हलराती है
आशाओं की भीषिका झेलनेवालों को;
औ; बड़े शौक़ से मौत पिलाती है जीवन
अपनी छाती से लिपट खेलनेवालों को।
तुम लाशें गिनते रहे खोजनेवालों की,
लेकिन, उनकी असलियत नहीं पहचान सके;
मुरदों में केवल यही ज़िन्दगीवाले थे
जो फूल उतारे बिना लौट कर आ न सके।

हो जहाँ कहीं भी नील कुसुम की फुलवारी,
मैं एक फूल तो किसी तरह ले जाऊँगा,
जूडे में जब तक भेंट नहीं यह बाँध सकूँ,
किस तरह प्राण की मणि को गले लगाऊँगा ?