Tuesday, September 28, 2010

कर लो हिन्दी से प्यार

हिन्दुस्तानी हैं हम हिन्दू, हिन्दी हमारी भाषा है।
इसमें वीणा के सुर हैं तो, ये सरिता की धारा है॥
इसमें सागर गहरा पिताः सा, तो ममता भी माँ सी है।
जिस भी रहे हम हाल में बंधु, इससे हमारा नाता है॥


हिन्दी पर है गर्व हमारा, इससे पुराना नाता है।
ये भावों की निर्झरणी है, ये देवो की वाणी है॥
इसमें पुत्र पिता कहते है और, पत्नी कहती प्राणाधार।
मैं भारत का पुत्र कहाता, ये भाषा इस मां की है॥


ये भाषा तुझको देती है, पूर्वजों का भी ज्ञान-प्रसाद।
और भविष्य भी है, जो तुम्हारा कर देती है शुभ संवाद॥
देखो प्यारे इसको बनाओ अपने गले का नवलख हार।
एक बात पते की बताऊँ, कर लो हिन्दी से भी प्यार॥

1 comment:

  1. ACHCHHI RACHNA. THODA IDHAR BHI DEKHEN.

    भाषा हो हिंदी और देश हिंदुस्तान
    देखो कितना सुंदर पवित्र है नाम.
    धरा है इसकी उर्वरा कितनी?
    है प्रकृति की क्षमता जितनी.

    सतत खिले हैं इसी धारा पर
    प्रज्ञान - विज्ञानं के सुमन निरंतर
    झाँक लो चाहे गगन में ऊपर
    या फिर देखो मही के अन्दर.

    सागर को भी मथ डाला है
    ऐसा उदाहरण और कहाँ है?
    हिम शिखर पर किया आराधना
    दूजा मिशाल ऐसी कहाँ कहाँ है?

    करके सरल इस ज्ञान राशि को
    हिंदी अब अलख जगाती है.
    गहन - गूढ़ उपनिषद् वेदांत को
    सहज लोक भाषा में समझती है.

    हर भाषा को उद्भाषित करता
    हिंदी को भी विकसित करता
    फिर भी एक कष्ट है भारी
    हिंदी बन न सकी भाषा राष्ट्र की
    लग गयी नजर उसे ध्रितराष्ट्र की.

    कौन उसे समझाएगा अब?
    वीणा कौन बजायेगा अब?
    डोर हाथ में अब है जिसकी
    जाने क्यों उसकी पैंट है खिसकी?

    हिंदी दिवस मानते हैं वे
    हवा में हाथ लहराते हैं वे
    आती है जब हाथ में बाजी
    अंगूठा ही दिखलाते हैं वे.

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