तुम्हारी आँखों में
मधुर आँच में क्या सिझ रहा है
जैसे कविता.....
जैसे बहुत कुछ।
क्या हुआ जो तुम मिले नहीं मुझसे
तुम्हारा अंधकार में दमकता
ललाट मैंने नहीं देखा
पछता नहीं रहा
तुम हुन्नरी थे
मेरे आदि आचार्य !
मैं भरम रहा हूँ
इधर-उधर, नार-खोह में
पौरुषहीन नहीं मैं,
तुम्हारा दिया बहुत कुछ है मेरे-पास
मैं भरमूँगा और पाऊँगा
जो चाहिए मुझे।
मेरे-तुम्हारे बीच
बहुत सारे चेहरे हैं झुलसे हुए
बहुत सारे दुखों के दुख हैं
ओ मेरे पुरनियाँ !
तुम्हारी आँखों में
क्या सिझ रहा है
मेरे लिए-उनके लिए
कविता.........
और बहुत कुछ।
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