हर नौजवान कॆ हाथों मॆं, बस बॆकारी का हाला !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है
ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब
रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब
खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !
धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं
झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं
निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य
का बाँचा हॊगा !
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा !!
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल
श्रृँगार बना !
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना !!
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-
जयकार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है
ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब
रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब
खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !
धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं
झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं
निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य
का बाँचा हॊगा !
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा !!
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल
श्रृँगार बना !
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना !!
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-
जयकार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !
No comments:
Post a Comment