Wednesday, November 19, 2014
हाई लेवल की छोरी !
तू हाई लेवल की छोरी सै
मै छोरा सूं जमीदारां का,
मै चलाऊं ट्रेक्टर 60 रै
तनै शौक लग्जरी कारां का,
तू तकड़े घर की छोरी सै...
के बुझूं तेरी बाता नै,
तू सोवै मखमल के गददयां पै
मैं पाणी लांऊ राता नै!
मै फ़ैन सूं लख्मीचंद का
तू गीत सुणै शकीरा के,
हम दिल के दरिया छोरी रै
फकीर सा लकीरां के,
तू स्कीन सॉफ्ट की लावै
क्रीम
मेरै छाले पड़ रे हाथा मैं,
तू सोवै मखमल के गददयां पै
मै पाणी लांऊ राता नै.!
मैं खाऊं रोट बाजरे के
तू पिज्जे-बर्गर खावै सै,
मै धोती कुर्ता पहरणिया
तनै जींस ब्रांडीड भावैं सै,
तू ताऊ नै अंकल कहदे सै
हम दिल तै निभावां नातां नै,
तू सोवै मखमल के गददयां पै
मैं पाणी लाऊं राता नै..!
म्हारै कई किल्या मै बाग रै
अर आमदनी सै लाखां की,
सै चौधर पूरी म्हारी रै
पर शर्म घणी सै आख्यां की,
जाट रिस्की सै
ना जाणै फाएदे-घाटा नै,
तू सोवै मखमल के गदद़या पै
मैं पाणी लांऊ राता नैं !! —
-"अभिषेक डबास"
भारतीय लड़कियों की आवाज
माँ बहुत दर्द सह कर ..बहुत दर्द दे कर ..
तुझसे कुछ कहकर में जा रही हूँ .. ..
आज मेरी विदाई में जब सखियाँ आयेगी .....
सफेद जोड़े में देख सिसक-सिसक मर जायेंगी ..
लड़की होने का ख़ुद पे फ़िर वो अफ़सोस जतायेंगी ....
माँ तू उनसे इतना कह देना दरिन्दों की दुनियाँ में सम्भल कर रहना ...
माँ राखी पर जब भईया की कलाई सूनी रह जायेगी ....
याद मुझे कर-कर जब उनकी आँख भर जायेगी ....
तिलक माथे पर करने को माँ रूह मेरी भी मचल जायेगी ....
माँ तू भईया को रोने ना देना .....
मैं साथ हूँ हर पल उनसे कह देना .....
माँ पापा भी छुप-छुप बहुत रोयेंगें ....
मैं कुछ न कर पाया ये कह कर खुदको कोसेंगें ...
माँ दर्द उन्हें ये होने ना देना ..
इल्ज़ाम कोई लेने ना देना ...
वो अभिमान है मेरा सम्मान हैं मेरा ..
तू उनसे इतना कह देना ..
माँ तेरे लिये अब क्या कहूँ ..
दर्द को तेरे शब्दों में कैसे बाँधूँ ...
फिर से जीने का मौक़ा कैसे माँगूं ...
माँ लोग तुझे सतायेंगें ....
मुझे आज़ादी देने का तुझपे इल्ज़ाम लगायेंगें ..
माँ सब सह लेना पर ये न कहना .....
"अगले जनम मोह़े बिटिया ना देनl ....l
Monday, November 17, 2014
मेहंदी लगे हाथ!!!!
वो मुझे मेहंदी लगे हाथ दिखा कर रोई .
में किसी और की हूँ बस इतना बता कर रोई .
उमर भर की जुदाई का ख्याल आया था शायद !!
वो मुझे पास अपने देर तक बिठा कर रोई ..
अब के न सही ज़रूर हषर मैं मिलेंगे !!
यकजा होने के दिलास दिला कर रोई .
कभी कहती थी के मैं नहीं जी पाऊँगी तुम्हारे बिन !!
और आज फिर वो ये बात दोहरा कर रोई !!
मुझ पे इक कुराब का तूफ़ान हो गया है !!
जब मेरे सामने मेरे ख़त जला कर रोई !!.
मेरी नफरत और अदावत पिघल गई इक पल में !!
वो बे-वफ़ा है तो क्यूँ मुझे रुला कर रोई !!
मुझ से जायदा बिछड़ने का गम उसे था !!
वक़्त -ए-रुखसत वो मुझे सिने से लगा कर रोई !!
मैं बेकसूर हु , कुदरत का फैसला है ये !!
लिपट के मुझ से बस वो इतना बता कर रोई !!
सब शिकवे मेरे इक पल में बदल गए !!
झील सी आँखों में जब आंसू सजा कर रोई .
केसे उस की मोहब्बत पैर शक करें हम !!
भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोई!!
आख़री आस भी जब टूटती देखी ऊसने,
अपनी डोलीके चिलमनको गिरा कर रोई।..........
में किसी और की हूँ बस इतना बता कर रोई .
उमर भर की जुदाई का ख्याल आया था शायद !!
वो मुझे पास अपने देर तक बिठा कर रोई ..
अब के न सही ज़रूर हषर मैं मिलेंगे !!
यकजा होने के दिलास दिला कर रोई .
कभी कहती थी के मैं नहीं जी पाऊँगी तुम्हारे बिन !!
और आज फिर वो ये बात दोहरा कर रोई !!
मुझ पे इक कुराब का तूफ़ान हो गया है !!
जब मेरे सामने मेरे ख़त जला कर रोई !!.
मेरी नफरत और अदावत पिघल गई इक पल में !!
वो बे-वफ़ा है तो क्यूँ मुझे रुला कर रोई !!
मुझ से जायदा बिछड़ने का गम उसे था !!
वक़्त -ए-रुखसत वो मुझे सिने से लगा कर रोई !!
मैं बेकसूर हु , कुदरत का फैसला है ये !!
लिपट के मुझ से बस वो इतना बता कर रोई !!
सब शिकवे मेरे इक पल में बदल गए !!
झील सी आँखों में जब आंसू सजा कर रोई .
केसे उस की मोहब्बत पैर शक करें हम !!
भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोई!!
आख़री आस भी जब टूटती देखी ऊसने,
अपनी डोलीके चिलमनको गिरा कर रोई।..........
श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!
हर नौजवान कॆ हाथों मॆं, बस बॆकारी का हाला !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है
ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब
रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब
खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !
धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं
झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं
निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य
का बाँचा हॊगा !
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा !!
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल
श्रृँगार बना !
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना !!
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-
जयकार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है
ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब
रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब
खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !
धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं
झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं
निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !!
बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य
का बाँचा हॊगा !
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा !!
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल
श्रृँगार बना !
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना !!
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-
जयकार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं
या अंगार लिखूं !
Monday, November 3, 2014
।-----:"शायरी":-----।
दिल कुछ इस तरह से इतरा रहा है!
कि जीने में सही कहूँ तो अब मजा आ रहा है!
-दिनेश करमनिया
न जाने किस कदर बीतेगी ये रात..
तेरा गम है, तेरी तन्हाई है और यादें भी हैं साथ!
-दिनेश करमनिया
मेरी रातों की राहत, दिन का इत्मीनान हो तुम,
जो छूटे तो दुआ, जो पा लूं तो खुदा हो तुम !
-दिनेश करमनिया
अै जिंदगी!
पलट उस पल को,
जिस घडी मेरा यार
मेरी यादों में, डूबा हो!
-दिनेश करमनिया
यारों!
पूछते हैं कि कैसे हो?
हमने जवाब दिया,
यारों की दुआएँ साथ हैं अब तक..
तो जिंदों में शुमार है!
-दिनेश करमनिया
ज़मीन सख़्त है और आसमाँ दूर,
बसर हो सके तो बसर कीजिए हुज़ूर!
जिंदा हूं पर जिंदगी से दूर हूं मैं
आज क्यूं इस कदर मजबूर हूं मैं
बिना जुर्म के ही सजा मिलती है मुझे
किससे कहूं आखिर बेकसूर हूं मैं..!
कोई तन्हा कैसे जिए, तुम्हें देख लेने के बाद,
दर्द आँखों का फन्हा हो, तुम्हें देख लेने के बाद!
-दिनेश करमनिया
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ।
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ।
हुज़ुर आपका भी एहतराम करता चलूँ
इधर से गुजरा, सोचा सलाम करता चलूँ
फिर चली मस्त हवा, और धुआँ उठने लगा,
इश्क ने दी बढा, और दिल जलने लगा!
-दिनेश करमनिया!
कौन कहता है तुझे हिसाब नहीं आता,
इस दिल से पूछ जो कर्जदार है तेरा!
-दिनेश करमनिया
रातों को ख्यालों में मैं भी और तुम भी,
और सुबह तन्हाई में मैं भी और तुम भी!
-दिनेश करमनिया
मुद्दत से जागी आँखों को एक बार सुलाने आ जाओ ,
माना कि तुम्हें प्यार नहीं ,नफरत ही जताने आ जाओ !
-शायर यार
जख्म-ए-जिगर को मैंने क्या खूब कुरेदा है ,
अब तक टपक रहा है तेरा नाम लहू के साथ!
-शायर यार
कुछ कलमे..
कुछ नगमें..
तेरे थे.. अब मेरी डायरी में,
किसी काम के नहीं!
-दिनेश करमनिया
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