तन्हा हर घड़ी रहूँ
मैं सवालों को ढोती हूँ !
... पैदा जब होती
तब माँ क्यूँ है रोती ?
मौहल्ले में है छाया यह
मातम सा क्यूँ है �
रात उम्मीदों में थी गुज़री
अब सहर क्यूँ है रोती ?
मेरे बापू का चेहरा
सुर्ख-ओ-ज़र्द क्यूँ है �
क्यूँ बाँध बाँहें खड़े हैं
पहल क्यूँ नहीं होती ?
कली गुलाब की हूँ
यह मालूम है मुझको -
कि चुभन काँटों की सदा
है मेरे पाँवों में होती !
मेंहदी की रस्में अभी
दूर हैं कोसों �
क्यूँ अभी से हूँ
मैं खिलौनों को रोती ?
मेरे बाबुल उठा ले
अपने कलेजे लगा ले �
मैं उम्रभर रहूँगी, तेरे
गम के बोझों को ढोती !
ख़ुदा तेरा कलेजा भी
पत्थर का क्यूँ है
दुआ तेरे दर पे मेरी
क़ुबूल क्यूँ नहीं होती ?
क्यूँ समझे ना ज़माना
ये सच की कसौटी �
कोई बेटा ना होता, जो
कोई बेटी ना होती !
माँ तू ही बचा ले
आँचल में छुपा ले �
तेरी बेटी हूँ मैं, और बेटी
कभी खोटी नहीं होती ! .....
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